Saturday, August 13, 2011

तुलना - दुष्यंत कुमार

 
गडरिये कितने सुखी हैं
वे ऊँचे दावे करते हैं
उनको ले कर
एक दूसरे को कोसते या लड़ते-मरते हैं।
जबकि
जनता की सेवा करने के भूखे
सारे दल भेडियों से टूटते हैं।
ऐसी-ऐसी बातें
और ऐसे शब्द सामने रखते हैं
जैसे कुछ नहीं हुआ है
और सब कुछ हो जाएगा
जबकि
सारे दल
पानी की तरह धन बहाते हैं,
गडरिये मेडों पर बैठे मुस्कुराते हैं
भेडों को बाड में करने के लिए
सभाएँ आयोजित करते हैं
रैलियाँ,
कंठ खरीदते हैं, हथेलियाँ,
शीत और ताप से झुलसे चेहरों पर
आश्वासनों का सूर्य उगाते हैं,
स्वेच्छा से
जिधर चाहते हैं ,उधर
भेडों को हाँके लिए जाते हैं
गडरिये कितने सुखी हैं

No comments:

Post a Comment